: *महान शिव भक्त महारानी अहिल्याबाई होल्कर*
आलेख:स्वाति दीक्षित,सी 209 मेपल अपार्टमेंट,जीरकपु
चंडीगढ़। जानी लेखिका स्वाति करते हुए जीरकपुर सी 209 मेपल अपार्टमेंट में रहने वाली स्वाति दीक्षित का लेख में कहना है कि देवो के देव महादेव का पवित्र सावन का महीना हिन्दु कैलेण्डर के अनुसार श्रवण मास चल रहा है। इस पवित्र सावन के महीने में हम सभी भगवान शिव और शक्ति का पूजन करते है। ऐसे समय में महान शिव भक्त महारानी अहिल्याबाई होल्कर जो की
ऐतिहासिक रूप से देश की सबसे ताकतवर और सफल महिलाओं में से एक थी जिन्होने 28 वर्षों तक मराठा साम्राज्य की कमान संभाली थी उनका योगदान याद आता है। भारत के ऐसे तमाम मंदिर जिन्हें कभी मुगलों ने तबाह कर दिया था उन्हें वापस से बनवाने का श्रेय अहिल्याबाई होल्कर को ही जाता है। आइए जानते हैं अहिल्याबाई होल्कर के जीवन की कुछ खास बातों के बारे में।
अहिल्याबाई होल्कर का जन्म महाराष्ट्र के अहमदनगर (अब अहिल्याबाई नगर) में 31मई 1725 को हुआ था। जिस वक्त महिलाएं विद्यालय नहीं जाती थीं, उस वक्त उनके पिता ने उन्हें स्कूल भेजा। सूबेदार मल्हारराव होल्कर जब एक मंदिर पहुंचे थे तब उन्होंने अहिल्याबाई होल्कर को देखा था। अहिल्या किसी राजघराने से संबंध नहीं रखती थीं लेकिन उनके तेज को देखकर मल्हारराव होल्कर ने अपने पुत्र खंडेराव से उनकी शादी करवाई। मल्हारराव अपनी बहु को भी राज-काज की चीजें सीखाते रहते थे। महारानी अहिल्याबाई होल्कर के पति खांडेराव होलकर 1754 में हुए कुम्भेर के युद्ध में शहीद हो गए थे। इसके 12 साल बाद ही ससुर मल्हार राव होलकर का भी निधन हो गया। इसके बाद अहिल्याबाई को मालवा की महारानी का ताज पहनाया गया। उन्होंने कई वर्षों तक मुगलों और अन्य दुश्मनों से अपने साम्राज्य की रक्षा की। वह खुद भी अपनी सेना के साथ युद्ध लड़ने जाया करती थीं। उन्होंने बेहतरीन तरीके से राज्य का संचालन किया। उन्होंने महेश्वर को अपनी राजधानी बनाई थी।उनका सारा जीवन वैराग्य, कर्त्तव्य-पालन और परमार्थ की साधना का बन गया। भगवान शिव की वह बड़ी भक्त थीं। बिना उनके पूजन के मुँह में पानी की बूंद नहीं जाने देती थीं। सारा राज्य उन्होंने शंकर को अर्पित कर रखा था और आप उनकी सेविका बनकर शासन चलाती थी। ‘संपति सब रघुपति के आहि’—सारी संपत्ति भगवान की है, इसका भरत के बाद प्रत्यक्ष और एकमात्र उदाहरण शायद वही थीं। राजाज्ञाओं पर हस्ताक्षर करते समय अपना नाम नहीं लिखती थीं। नीचे केवल श्री शंकर लिख देती थीं। उनके रुपयों पर शंकर का लिंग और बिल्व पत्र का चित्र अंकित है ओर पैसों पर नंदी का। तब से लेकर भारतीय स्वराज्य की प्राप्ति तक इंदौर के सिंहासन पर जितने नरेश उनके बाद में आये सबकी राजाज्ञाऐं जब तक की श्री शंकर आज्ञा जारी नहीं होती, तब तक वह राजाज्ञा नहीं मानी जाती थी और उस पर अमल भी नहीं होता था। अहिल्याबाई का रहन-सहन बिल्कुल सादा था। शुद्ध सफ़ेद वस्त्र धारण करती थीं। जेवर आदि कुछ नहीं पहनती थी। भगवान की पूजा, अच्छे ग्रंथों को सुनना ओर राजकाज आदि में नियमित रहती थी। महारानी
अहिल्याबाई होल्कर ने अपने राज में काशी के विश्वनाथ मंदिर, गुजरात के सोमनाथ मंदिर समेत देश के विभिन्न हिस्सों में मंदिरों का पुनर्निर्माण करवाया। 17वीं शताब्दी के अंत में काशी में गंगा किनारे मणिकर्णिका घाट का निर्माण करवाने का श्रेय भी अहिल्याबाई होल्कर को ही जाता है। मांडू में नीलकंठ महादेव मंदिर भी उन्हीं की देन है। इसके अलावा उन्होंने देश के ज्यादातर जरूरी जगहों पर भोजनालय और विश्रामगृह आदि की स्थापना करवाई थी। उन्होंने कलकत्ता से बनारस तक की सड़क का भी निर्माण करवाया था।उनके जीवनकाल में ही जनता इनको ‘देवी’ समझने और कहने लगी थी। इन्दौर में प्रति वर्ष भाद्रपद कृष्णा चतुर्दशी के दिन अहिल्योत्सव मनाया जाता है।