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डर के माहौल में सिमटती शिक्षा व अज्ञात भय से आशंकित शिक्षा के ‘ इदारे’

 

केन्द्रीय विश्वविद्यालयों में डर का माहौल: एक चिंताजनक प्रवृत्ति

आलेख:लेखक:अजय मलिक 

लेखक अजय मलिक

भारत के केन्द्रीय विश्वविद्यालय, जो शिक्षा, शोध और बौद्धिक विकास के प्रमुख केंद्र माने जाते हैं, आजकल एक गंभीर समस्या का सामना कर रहे हैं: डर का माहौल। यह माहौल न केवल विद्यार्थियों के शैक्षिक विकास पर नकारात्मक प्रभाव डाल रहा है, बल्कि शिक्षकों और कर्मचारियों के बीच भी असुरक्षा और मानसिक तनाव को बढ़ा रहा है। इसके कई कारण हैं, जिनमें राजनीतिक हस्तक्षेप, विचारों की स्वतंत्रता पर अंकुश, और बढ़ती हिंसात्मक घटनाएँ प्रमुख हैं।

2014 में नई सरकार के गठन के बाद से शिक्षा नीति में कुछ प्रमुख बदलाव देखे गए। कई केन्द्रीय विश्वविद्यालयों में छात्र संघ चुनावों पर नियंत्रण लगाने की कोशिशें शुरू हुईं। इस अवधि में सबसे चर्चित घटनाओं में से एक दिल्ली विश्वविद्यालय में FYUP (Four-Year Undergraduate Program) का विवाद था। छात्रों और शिक्षकों ने इसके खिलाफ विरोध किया, जिससे सरकार और विश्वविद्यालय प्रशासन के बीच टकराव का माहौल बना।2014: दिल्ली विश्वविद्यालय में FYUP के खिलाफ विरोध। सरकार ने अंततः इस प्रोग्राम को वापस लिया, लेकिन इसने छात्रों और शिक्षकों के बीच सरकार के प्रति अविश्वास पैदा किया।

2016: रोहित वेमुला और जेएनयू का विवाद

2016 में दो प्रमुख घटनाओं ने भारतीय विश्वविद्यालयों में असुरक्षा और डर के माहौल को और गहरा कर दिया।जनवरी 2016: हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी के छात्र रोहित वेमुला की आत्महत्या ने दलित छात्रों के साथ भेदभाव और संस्थागत असमानता को उजागर किया। वेमुला की मौत ने छात्रों और प्रशासन के बीच तनाव को जन्म दिया।

फरवरी 2016: जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) में छात्रों पर देशद्रोह का आरोप लगाया गया, जब कैंपस में एक कार्यक्रम आयोजित किया गया। इस घटना के बाद, सरकार और प्रशासन ने जेएनयू के छात्रों पर कड़ी कार्रवाई की, जिससे जेएनयू छात्र अध्यक्ष को गिरफ्तार किया गया था हालाकि उनके खिलाफ पर्याप्त सबूत न होने पर कोर्ट ने रिहा कर दिया। जिससे डर का माहौल और बढ़ गया। 2017 में विश्वविद्यालयों में असुरक्षा का माहौल और भी गहरा हो गया। बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय (BHU) में छात्राओं ने छेड़छाड़ की घटनाओं के खिलाफ प्रदर्शन किया, जिसे विश्वविद्यालय प्रशासन ने कड़ी कार्रवाई के बजाय पुलिस बल का सहारा लेकर दबाने की कोशिश की। इससे महिला सुरक्षा को लेकर सवाल खड़े हुए और प्रशासन के प्रति अविश्वास बढ़ा।सितंबर 2017: BHU में छात्राओं का विरोध प्रदर्शन, जिस पर पुलिस द्वारा लाठीचार्ज किया गया।

2019 में नागरिकता संशोधन कानून (CAA) और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) के खिलाफ पूरे देश में विरोध प्रदर्शन हुए। केन्द्रीय विश्वविद्यालयों के छात्रों ने इस विरोध में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। जामिया मिल्लिया इस्लामिया और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में छात्रों पर पुलिस द्वारा बल प्रयोग की घटनाओं ने विश्वविद्यालय परिसरों को असुरक्षित बना दिया।दिसंबर 2019: जामिया मिल्लिया इस्लामिया और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में पुलिस की बर्बरता। 2020 में लागू हुई नई शिक्षा नीति (NEP) ने शैक्षणिक ढांचे में बड़े बदलाव किए, जिसका छात्रों और शिक्षकों ने व्यापक स्तर पर विरोध किया। इसके अलावा, विश्वविद्यालयों में बढ़ते राजनीतिक हस्तक्षेप ने शैक्षिक स्वतंत्रता पर सवाल खड़े किए हैं।2021: NEP के खिलाफ छात्रों और शिक्षकों का विरोध।जुलाई 2023: छात्रों और शिक्षकों के बीच संवाद की कमी और प्रशासनिक निर्णयों से उत्पन्न तनाव के कारण विरोध प्रदर्शन। वही हरियाणा की एक मात्र केन्द्रीय विश्वविद्यालय में दिखावे के लिए दो वर्ष से छात्र संघ चुनाव हो रहे हैं जिसमें कक्षा में तो वेटिंग से डेलीगट चुन रहे हैं, लेकिन आज तक छात्र संघ अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, सचिव अन्य पदों पर चुनाव नहीं करवाए जिससे छात्र अपने आप को ठंगा सा महसुस कर रहे हैं।

पिछले एक दशक में केन्द्रीय विश्वविद्यालयों में छात्रों और शिक्षकों के बीच बढ़ते डर और असुरक्षा के माहौल ने शैक्षिक स्वतंत्रता, सामाजिक न्याय, और छात्रों के अधिकारों पर गंभीर प्रश्न खड़े किए हैं। प्रशासन और सरकार के हस्तक्षेप ने इस माहौल को और भी जटिल बना दिया है। हालांकि, इस दौरान छात्रों ने बार-बार विरोध प्रदर्शनों के जरिए अपनी आवाज उठाई है, लेकिन उनकी समस्याओं का समाधान अब भी एक चुनौती बना हुआ है।

नोट:आलेख में प्रकाशित विचार लेखक के निजी विचार हैं ऑनलाइन भास्कर का इन से सहमत होना अनिवार्य नहीं है।

Online Bhaskar
Author: Online Bhaskar

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