किसानों और सरकार के प्रतिनिधियों के बीच नौवें दौर की बातचीत बेनतीजा रही l जनवरी 15 को फिर एक बार बातचीत तय की गई है l लेकिन इस वार्ता के दौर के बाद सवाल उठ रहे हैं की भविष्य में क्या होगा क्योंकि सरकार कहती है कानून वापसी नहीं और किसान कहते हैं तब तक घर वापसी नहीं ऐसे में किसान नेता राकेश टिकैत का यह बयान की किसान मई 2024 तक दिल्ली बॉर्डर पर बैठने को तैयार हैं बहुत महत्व रखता है इसका मतलब है कि किसानों को नरेंद्र मोदी की सरकार पर अब कोई भरोसा नहीं रहा और ना ही कोई उम्मीद l क्योंकि किसान अब 2024 के चुनाव के बाद तक की बात करते हैं इससे स्पष्ट है कि आने वाले दिनों में बीजेपी की मुसीबतें बढ़ने वाली है ।
बतादें कि मई 2024 में लोकसभा चुनाव होने हैं। किसानों का सीधा सा तात्पर्य 2024 के चुनाव में बीजेपी को धरती सुंघाने की अपनी ताकत का अहसास कराना है । इसका एक ओर मतलब यह निकलता है कि किसान 2019 में की गई गलती को महसूस कर रहे हैं । दिल्ली बोर्डर पर धरना दे रहे ज्यादातर किसानों का कहना है कि पिछले चुनाव में उन्होंने मोदी के नाम पर बीजेपी को वोट दिया था, जिसका खामियाजा अभी भुगतना पड़ रहा है । ऐसे में किसानों का सीधा सा मतलब यह है कि वे तीनों कृषि कानूनों को वापसी के बिना घर वापसी नहीं करेंगे भले उसके लिए उन्हें 2024 के लोकसभा के चुनाव का इंतजार करना पड़े ।
किसानों के इस फैसले से एक ओर साफ संकेत मिल रहा है कि किसानों को पूरा भरोसा है कि 2024 के चुनाव में बीजेपी को उसकी औकात बता देंगे । राजनैतिक पंडितों का मानना है कि जब तक किसान दिल्ली बॉर्डर पर जमें हैं तब तक बीजेपी के विरोधियों के लिए यह आंदोलन मन की मुराद होगा और बीजेपी के गले की फांस से कम नहीं !
खैर 2024 तो बहुत दूर है, उस से पहले किसानों का 26 जनवरी को दिल्ली परेड ही इस आंदोलन के फैसले की घड़ी हो सकती है। किसानों का ऐलान है कि करीब दो लाख ट्रैक्टरों के साथ देश के लाखों किसान दिल्ली की सड़कों पर किसान परेड निकालेंगे । किसानों की यह घोषणा थूक बिलोने जैसी नहीं है । किसानों 7 जनवरी को केएमपी पर इसे अमलीजामा पहना के दिखाया है। किसान संगठनों का दावा है कि 7जनवरी को 60 हजार से ज्यादा ट्रैक्टरों में लाखों किसानों ने 26 जनवरी के लिए परेड की रिहर्सल परेड में हिस्सा लिया । कहीं कोई चिड़िया तक नहीं हिली इन्हें रोकने के लिए ।
ऐसे में 26 जनवरी को सरकार ओर किसानों में टकराव होना लाजिमी है। जिसे किसी भी सूरत में किसी के लिए भी फायदेमंद नहीं कहा जा सकता । क्योंकि सरकार की कौशिश होगी कि किसान किसी भी सूरत में ट्रैक्टरों सहित दिल्ली में प्रवेश ना कर पाएं वहीं किसान हार हालत में दिल्ली में प्रदर्शन करने पर अडे हैं । इन हालात में अगर कुछ अनहोनी होती है तो वह देश का दुर्भाग्य होगा । अत: आशा करते हैं कि 15 जनवरी की बातचीत में सर्वमान्य हल सरकार निकले। अगर नहीं निकलता है तो सरकार को चाहिए कि किसी समझौते तक इन कानूनों को रोक दे । ओर किसानों के दिलों में समाए भय को दूर करें । अन्यथा तो फिर इस देश की राजनीती की दिशा और दशा का के बारे में कुछ भी कह पाना बहुत मुश्किल है l